Monday

नवगीत - शिशिर ॠतु


देखो ॠतु ने ली अंगड़ाई
भागी - दौड़ी शिशिर आई

नभ मे फैला जब अँधियारा
धुंध ने उसको जाकर घेरा
बंद दरवाजे नगर द्वारे
खुले मैदान बने चौबारे
कुहरे ने चादर फैलाई
देखो ॠतु ने ली अंगड़ाई
भागी - दौड़ी शिशिर आई

चमकी किरने तिरछी तिरछी
रोशन नव पल्लव हर पंछी
ठिठुर गया हर दिल का बेला
छुप के बादल ने नभ को ढेला
फूल खिला कली कुम्हलाई
देखो ॠतु ने ली अंगड़ाई
भागी - दौड़ी शिशिर आई

ठंडी पवन खामोश सवेरा
निज- लिज धूप बदन झकझेरा
दुबक गया हर कोई अलबेला
चाँद अकेला तारो का मेला
ओढ़े चादर और रज़ाई
देखो ॠतु ने ली अंगड़ाई
भागी - दौड़ी शिशिर आई

No comments: